दिल्ली का खाना कहाँ से आता है: दिल्ली में शहरी खेती और भोजन तंत्र का रिश्ता
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यूं तो दिल्ली आधिकारिक रूप से एक गैर कृषि क्षेत्र के रूप में घोषित है | किन्तु यह स्थिति हमेशा से नहीं थी, लगभग 60 के दशक तक पारंपरिक तथा नियमित रूप से दिल्ली में खेती होती थी और दिल्ली में रहने वालों की खाद्य संबंधी जरूरतें लगभग इसी खेती से पूरी हो जाया करती थीं| लेकिन शहरीकरण के बढ़ते प्रभाव और उद्योगों के विकास ने दिल्ली में होने वाली खेती को निगल लिया इसके फलस्वरूप दिल्ली अपने खाद्य संबंधी जरूरतों के लिए काफी हद तक अपने पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब पर निर्भर हो गयी |
तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण खेती और अन्य खेती-संबंधी कामों के लिए जमीन की उपलब्धता लगभग न के बराबर रह गई है | इन सब के बावजूद आज भी दिल्ली के कई इलाकों में खेती होते देखी जा सकती है | इनमें प्रमुख क्षेत्र हैं यमुना खादर, यमुना बाइपास के पास, गीता कालोनी के आसपास, यमुना का पश्चिमी और पूर्वी कछार, चिल्ला खादर, मदनपुर खादर, बदरपुर खादर (यमुना पार), आदि। इन जगहों पर रबी ,खरीफ फसल के साथ-साथ साग–सब्जियां फल-फूल की भी भरपूर पैदावार की जाती है | पहले दिल्ली में होने वाली खेती में कई तरह की फसलें उगाई जाती थीं जैसे – जौ, ज्वार आदि लेकिन इन दिनों दिल्ली में उपजाने वाले अनाजों मे प्रमुख हैं धान, सरसों और बाजरा |
इसके अलावा इन पारंपरिक खेती से इतर इन दिनों दिल्ली में नर्सरियाँ तथा फार्महाउस के रूप में भी खेती होती है | लेकिन बाजार के बदलते परिदृश्य में लागत, बचत और मुनाफा के चक्र के बीच राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की ये छिटपुट खेतियाँ भी अपने अस्तित्व को लेकर अनिश्चित हैं |
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