सत्र-1 विषय: नई शहरियत के लिए दिशाएँ
फार्मिंग द सिटी-21 का पहला सत्र इस विषय पर केंद्रित होगा कि आधुनिक पूंजीवादी शहर कई प्रकार के संकटों के वाहक हैं और उनका इस स्वरूप को बड़े पैमाने पर हो रही बेदखली और पर्यावरणीय गिरावट के रूप में साफ-साफ देखा जा रहा है। शहरी आबादी तेजी से बढ़ी है, जिसके पीछे की वजह कुछ हद तक गाँव से शहरी इलाकों में लोगों का आकर बस जाना भी है, और इसके चलते अलग-अलग शहरी तंत्रों जैसे भोजन, सफाई, पानी, स्वास्थ्य पर दबाव बढ़ा है। शहरी इलाकों को सभी के लिए अधिक टिकाऊ और समावेशी कैसे बनाया जाए इसके विकल्प खोजने में लोगों की रूचि हाल-फिलहाल में बढ़ी है।
वक्ता
राजेंद्र रवि जन संसाधन केंद्र के संस्थापक सदस्य और कार्यक्रम समन्वयक हैं। वह 3 दशकों से अधिक समय से टिकाऊ शहर और शहरी राजनीति के मुद्दों पर शोध कर रहे हैं।
निशांत आईआईटी दिल्ली में शोध छात्र हैं और जन संसाधन केंद्र के सदस्य हैं।
सुजीत पटवर्धन पेशे से ग्राफिक डिजाइनर हैं। फोटोग्राफी, सुलेख, चित्रकला, टाइपोग्राफी और पर्यावरण में रुचि रखते हैं। वे परिसर (पर्यावरण पर केन्द्रित एक गैर सरकारी संगठन) के संस्थापक और ट्रस्टी भी हैं जो 1987 में शुरू हुआ था।
रोहित नेगी अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली में शहरी अध्ययन के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। वह 2015 से दिल्ली और उसके आसपास वायु प्रदूषण के मुद्दे पर काम कर रहे हैं।
सत्र-2 शहर-गाँव के बीच का अलगाव
इस सत्र में, शहरी और ग्रामीण भारत के बीच बढ़ते विभाजन पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, विशेष रूप से नए सरकार द्वारा लाये गए नए कृषि कानूनों के माध्यम से खेती और भोजन तंत्र के प्रायोजित कॉर्पोरेटीकरण के व्यापक संदर्भ में इस पर चर्चा की जाएगी। नए कानूनों के खिलाफ किसानों द्वारा देशव्यापी विरोध के बीच, इस सत्र के जरिये शहर और गांव के बीच सम्बन्ध को स्वस्थ और सामंजस्यपूर्ण बनाने की दिशा में बदलाव लाने के लिए शहरी खेती और अन्य सामुदायिक विकल्पों को प्रस्तुत किया जायेगा।
वक्ता
डॉ. सुनीलम एक समाजवादी हैं जो मुलताई विधानसभा क्षेत्र (मध्य प्रदेश) से दो बार सांसद रहे हैं। वह समाजवादी समागम के महासचिव और किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष हैं। वह एनएपीएम के राष्ट्रीय संयोजकों में से एक हैं।
सुभद्रा खापेर्दे, छत्तीसगढ़ में हाशिये के दलित किसान परिवार से हैं। 1989 में गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित भूमि अधिकार आंदोलन के लिए एक कार्यकर्ता के रूप में काम करना शुरू किया। वह पीएचडी कर रही हैं और एक एनजीओ महिला जगत लिहाज समिति के माध्यम से मध्य प्रदेश में लैंगिक अधिकार, प्रजनन स्वास्थ्य, आजीविका, प्राकृतिक संसाधन संरक्षण, टिकाऊ कृषि, खाद्य सुरक्षा और शिक्षा के क्षेत्र में उनका काम जारी है।
सोमा के पी एक शोधकर्ता और नीति विश्लेषक हैं जो मकाम से जुड़ी हैं। उनकी पृष्ठभूमि शहरी और क्षेत्रीय नियोजन में है।
संचालक
मधुरेश कुमार जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) के राष्ट्रीय संयोजक हैं और मैसाचुसेट्स विश्वविद्यालय, एमहर्स्ट में प्रतिरोध अध्ययन फेलो हैं। वह जन प्रतिरोधों पर नियमित रूप से लिखते हैं और कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क में शामिल हैं।