भारतीय शहरों में शहरी खेती की स्थिति: इंदौर

शहरी खेती बहुत लम्बे समय से ही भारतीय शहरों का एक अभिन्न हिस्सा रही है। संसाधनों की कमी और बढ़ते पारिस्थितिक पदचिह्न से जूझते शहर में ये एक विकल्प है जिसके जरिये शहर और शहरी समुदाय अधिक आत्मनिर्भर बन सकते हैं। अधिकांश शहरों में, यह मुद्दा नदियों की स्थिति और नदी के किनारों पर प्रस्तावित विकास से भी जुड़ा हुआ है।

जन संसाधन केंद्र (पीआरसी) ने भारतीय शहरों में शहरी खेती में मौजूदा प्रथाओं और उभरते रुझानों का दस्तावेजीकरण किया है। यह शृंखला पहले से चल रहे अनुसंधान को और विस्तार देने और अन्य भारतीय शहरों में शहरी खेती की पद्धतियों की ओर ध्यान आकर्षित करने का एक प्रयास है।

इस श्रृंखला में प्रस्तुत की जा रही ये सभी रिपोर्ट मुंबई, पुणे, इंदौर, रांची सहित विभिन्न भारतीय शहरों में किए गए विस्तृत और व्यापक अध्ययनों पर आधारित हैं। इन रिपोर्टों के लिए शोध कार्य जन संसाधन केंद्र की ‘शहरी कृषि अनुसंधान फैलोशिप’ के अंतर्गत किये गए हैं।

इन अध्ययनों के जरिये हमने शहरी किसानों, छतिया किसानों, नदी के किनारे और तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों आदि के साथ की गयी बातचीत के आधार पर शहरी खेती के प्रसार का पता लगाया है।

इस रिपोर्ट शृंखला को तैयार करने के पीछे हमारा विचार शहरी खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों को टटोलना और शहर की पारिस्थितिकी व्यवस्था के लिए उनके महत्व के बारे में जानकारी बढ़ाना है। हमें पूरी उम्मीद है कि ये रिपोर्टें इन शहरों में खेती पर आगे के शोध के लिए एक शुरुआती बिंदु के रूप में काम करेंगी, और गहन चर्चा और रचनात्मक रणनीति बनाने के लिए किसान साथियों, स्वतंत्र शोधकर्ताओं तथा अन्य नागरिक समाज संगठनों को एक साथ आने के लिए प्रेरित करेंगी।

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