जन संसाधन केंद्र (PRC) का गठन सबके उपयोग में आने वाले प्राकृतिक, सामाजिक और अन्य प्रकार के संसाधनों के इर्द-गिर्द हो रहे संघर्षों को अनुसंधान-सम्बन्धी मदद देने के उद्देश्य से किया गया है। लेकिन इस पहल की जरूरत क्यों है?
हम इस मुग़ालते में न रहें कि सबके लिए इंसाफ़ और मुक्ति के जिन आदर्शों का हमसे वादा किया गया था, वे सब मौजूदा निज़ाम में हमें वाक़ई में मिल पाएँगे। आधुनिकता के दौर और ख़ासकर 1970 के आख़िर से धरती के सबसे ज़रूरी पारिस्थितिक तंत्र उत्तरोत्तर रफ़्तार से तबाह हो रहे हैं। इससे उपजे पर्यावरणीय संकट से संसाधनों के लिए ख़ूनी संघर्ष और तेज़ होने का अंदेशा है जिससे समूचे इंसानी अस्तित्व पर ही ख़तरा आ खड़ा हुआ है। सामाजिक असुरक्षा को कम करने वाले सामुदायिक सुरक्षा कवच कमज़ोर होकर ख़त्म हो गये हैं। सामूहिक चेतना बनाने और संगठित होने की गुंजाइश सिकुड़ कर थोड़ी ही रह गयी है। मौजूदा एकलवादी, नवदारवादी निज़ाम में ताक़तवर ज़ात ने संसाधनों पर अपना शिकंजा और मज़बूत कर लिया है। इसका नतीजा ये हुआ है कि सबकी ज़रूरतें पूरी करने के लिहाज़ से संसाधनों के सामूहिक दोहन की सम्भावना लगभग ख़त्म होती दिख रही है।
ऐसी परिस्थिति में, जन संसाधन पीठ (PRC) का ख़याल आंदोलनकारियों, फिकरमंद बुद्धजीवियों, नागरिकों और समुदायों के साथ बहुत-सी चर्चाओं के दौरान पला-बढ़ा है। जन संसाधन पीठ का उद्देश्य हर तरफ़ की आंदोलनकारी गतिविधियों से मिले बेशक़ीमती इल्म और लोगों के ख़यालों में पनपे सम्भावित विकल्पों की ज़मीन पर एकजुटता के नए बुनियादी ढाँचे को तैयार करना है। इस आग़ाज़ के ज़रिए हम संसाधनों को वापस जनता के क़ाबू में लाने की संभावनाएँ तलाशना चाहते हैं और समझना चाहते हैं कि कैसे भूख, बेघरी, वातावरण के प्रदूषण, और जातीय, लैंगिक और धार्मिक अन्यायों जैसी अड़ियल मुसीबतों को दूर करने में इस तरीके से कामयाबी मिल सकती है। इसके लिए ज़रूरी है कि हम ताक़त की बनावट को समझें जो मलकियत के ख़ास तरह के सम्बन्धों पर टिकी है और ये भी कि संसाधनों के दोहन को लेकर सामाजिक समूहों की आपसी राजनीति, कॉर्पोरेट और राज्य के विरुद्ध संघर्ष की ऐतिहासिकता, और सामुदायिक संसाधनों के ज़िम्मेदार प्रबंधन को ठीक से समझा और समझाया जाए। जन संसाधन पीठ का ख़ास तौर से उन इलाक़ों में अपनी गतिविधि करने की मंशा रखती है जहाँ उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति की सम्भावना ज़्यादा से ज़्यादा हो। इनमें हम उन इलाक़ों को ख़ास तौर से शामिल करते हैं जहाँ संसाधनों के सामूहिक स्वामित्व को लेकर संघर्ष या तो चल रहे हैं, या ऐतिहासिक संघर्ष चले हैं, या ऐसे संघर्षों को पैदा करने की गुंजाइश है (जैसे- सामुदायिक/जन संसाधनों का निजीकरण; नदी, जंगल और अन्य नैसर्गिक परिस्थितिक तंत्रों का नाश; शहरी सार्वजनिक संसाधनों को समृद्ध और ताक़तवर वर्ग के उपभोग के लिए हड़पने की परियोजनाएँ जैसे मेट्रो रेल; इत्यादि)। ज़मीनी संघर्ष तथा सामुदायिक गतिविधियों के लिए ज़रूरी मदद इकट्ठा करने के लिए जन संसाधन पीठ सरकारी योजनाओं पर नज़र रखने, शोध और प्रमाण इकट्ठा करने और ज़मीनी नेटवर्क तैयार करने पर अपना ध्यान केंद्रित करेगी।
हम समान अभिरुचि वाले व्यक्तियों और नागरिक समूहों को जन संसाधन पीठ से जुड़ने के लिए आमंत्रित करते हैं। इस बारे में और अधिक जानकारी के लिए आप हमसे सीधे सम्पर्क कर सकते हैं।
ईमेल पता: prc.india@yahoo.com