ऐसे समय में जब दुनिया जलवायु और जनस्वास्थ्य के आपातकाल से लड़ रही है, तब हमें यह सोचने की ज़रूरत है कि हमारे समाज और अर्थव्यवस्था में एक व्यवस्था-परिवर्तन कैसे लाया जाए। आत्मनिर्भरता केवल एक नारा न रह जाए, इसलिए इसे अमल में लाने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी होगी। शहरी खेती और हमारे शहरों के ढाँचों के बारे में पुनर्विचार उसी चिंतन और व्यवहार का हिस्सा हैं। अलग-अलग ज़रूरतों और संदर्भों के तहत दुनिया के विभिन्न हिस्सों में, जन समुदाय अपने रिहाइश की जगह पर खेती करते रहे हैं। भारत में हम इसे स्वास्थ्य और पर्यावरण के नजरिये से गंभीरता से ले रहे हैं क्योंकि इसका हमारे शहरों और उनके बुनियादी ढांचे पर बहुत व्यापक प्रभाव है। लेकिन लेबनान, फिलिस्तीन और सीरिया में जन समर्थित विद्रोह, संघर्ष और सत्ता पक्ष द्वारा की जा रही घेराबंदी और दमन के बीच जन समुदायों और एक्टिविस्ट समूहों ने शहरी खेती करना शुरू किया है न सिर्फ अपने अस्तित्व को बचाने के लिए बल्कि प्रतिरोध और नाफ़रमानी के एक जरिये के तौर पर भी। इस इलाके के लाखों लोग शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं, जहां वे न केवल अपने परिवारों को खिलाने के लिए, बल्कि अपने बीजों और तकनीकों को संरक्षित करने के लिए जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों से लेकर टिन के बक्सों में खाना उगा रहे हैं और इस तरह खेती को कॉर्पोरेट हाथों में जाने से रोक रहे हैं। इस तरह शहरी खेती एक राजनीतिक गतिविधि है।
इस मुद्दे पर चल रही हमारी बातचीत की श्रृंखला में अगली कड़ी के तौर पर हम आपको इस दिलचस्प संवाद के लिए आमंत्रित करते हैं। इसमें हम जन संसाधन केंद्र की ओर से भी क्यूबा, दिल्ली और अन्य स्थानों पर शहरी खेती के अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों पर अपनी पुस्तिकाएं जारी करेंगे।
वक्ता
- लीना इस्माईल फिलिस्तीन में सामुदायिक विकास और खाद्य संप्रभुता पर काम करने वाली एक पर्यावरण कार्यकर्ता हैं।
- खालिद हमूद लेबनान में रहने वाले एक वास्तुकर्मी और पर्यावरण कार्यकर्ता हैं।
- सर्ज हर्फूशे लेबनान में रहते हैं और एक किसान और पर्यावरण कार्यकर्ता हैं।
- अब्दल्ला अलखतीब फिलिस्तीनी-सीरियाई मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और उन्होंने एक ऐसे समय में अपने शहर में खेती शुरू की है जब उस इलाके को सीरियाई सत्ता ने घेर लिया है।
मॉडरेशन
- अंसार जसीम एक एक्टिविस्ट हैं जो पश्चिम एशिया में सिविल सोसाइटी और लोकप्रिय आंदोलनों के बीच के रिश्तों पर काम कर रही हैं।
- मधुरेश कुमार नेशनल एलायंस ऑफ़ पीपुल्स मूवमेंट्स (NAPM) इंडिया के साथ हैं।
मेजबान
- राजेंद्र रवि जन संसाधन केंद्र के कार्यक्रम निदेशक हैं।
- निशांत जन संसाधन केंद्र के सदस्य हैं और शहरी प्रणालियों तथा विकल्पों पर काम करते हैं।
नोट: इस चर्चा को अंग्रेजी और हिंदी में सुने जाने का विकल्प उपलब्ध रहेगा| हिंदी में लाइव सारांश भी देने की हमारी कोशिश रहेगी|