Momentum Jharkhand: Unrestricted Plunder of Resources by the Corporate

This day-long public meeting was organised by People’s Resource Centre in collaboration with Institute for Democracy and Sustainability (IDS) Delhi, National Alliance of People’s Movements (NAPM) Jharkhand, Jharkhand Loktantrik Manch and Ekal Naari Sashakti Sangathan. The discussion was organised into three panel sessions

1) Session-1: Jharkhand Government- For Corporate or For Public

Panelists: Prafulla Samantra (Goldman Prize awardee, leader of Niyamgiri Movement), Dayamani Barla (social activist), Balram (social activist based in Jharkhand), Ashok Verma (Jharkhand Loktantrik Manch)

2) Session-2: Whose Resources, Whose Development: In the context of Sahibganj Port and Godda power plant

Panelists: Radheshyam Mangolpuri (author of ‘Loktantra Aur Vikas Ka Vartman Paridrishya’), Chintamani Sahu (Social and political activist), Jacinta Kerketta (poet and scholar-activist based in Jharkhand), Vivek (Member of the Godda fact-finding team), Ranjit (state president, Bhim Army), Basant Hetamsaria (Jharkhand Vikas Nyas)

3) Session-3: Ranchi City: Smart City versus Self-reliant City

Panelists: Rajendra Bhise (Right to the City, Mumbai and YUVA), Lakkhi Das (scholar-activist working on urban and slum issues), Binny Azad (Ekal Nari Sashakti Sangathan), Mahendra Yadav (Paidal Cycle Yatri Adhikar Manch and SUMNet India), Nishant (IIT Delhi), Madhuresh Kumar (NAPM)


 

 

 

 

 

Summary

नियमगिरि आंदोलन के नेता और गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंत्रा ने कहा कि 90 के दशक में आर्थिक नीति में बदलाव संविधान की भावना के खिलाफ था कॉर्पोरेट धन के दम पर जो सरकार इस बार केंद्र में बनी उसने पिछले पांच साल में कॉर्पोरेट को छूट देकर कॉर्पोरेट की शक्ति को और मजबूत कर दिया है। अडाणी, अम्बानी और अन्य बड़े-बड़े कॉर्पोरेट को जितना फायदा दिलाया जाता है, राजनीतिक पार्टियां को उतना ही ज्यादा फण्ड मिलता है। देश मे इस तरह के भ्रष्टाचार को क़ानूनसंगत बना दिया गया है। जबकि हमारे संविधान के 39वें अनुच्छेद में पर्यावरण को बचाने के लिए संभावना बनाई गई है। इसलिए संविधान को केंद्र में रखकर कॉर्पोरेट के खिलाफ जनान्दोलन चलाना होगा।

सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला ने कहा कि जल, जंगल, जमीन को बचाने वाले जनांदोलनों के लिए समय हमेशा ही चुनौती भरा था। लेकिन 2014 के बाद से 5 साल हमेशा हम सशंकित रहे कि संविधान बचेगा या नहीं। संसाधनों की लूट तो हो ही रही है, जाति-धर्म के आधार पर टकराव और हिंसा पहली बार इतना बढ़ गये हैं। 2017 में कानून लाकर जमीन अधिग्रहण के पहले एसआईए और ईआईए को गैर-जरुरी कर दिया गया। लीज होल्डर को जमीन बेचने का अधिकार दे दिया गया है। 110 प्रखंड जो सुदूर इलाके में हैं, उनको अतिपिछड़ा घोषित करके पांचवें अनुसूची के तहत मिले अधिकार को खत्म करने का कानूनी प्रारूप भी ले आये हैं। मोमेंटम झारखंड इसीलिये आयोजित किया जा रहा है कि जहां भी कॉर्पोरेट को जमीन चाहिए वहां ऑनलाइन ही भूमि का अधिकार ट्रांसफर कर दिया जाए। सिंगल विंडो के द्वारा सरना की भूमि, चारागाह, छोटे नाली-नाले आदि सब को सरकारी जमीन बता के ऑनलाइन ही ट्रान्सफर कर दिया जा रहा है। ऐसे ही छोटे-छोटे खंडों में करके सारे झारखंड में जमीन पर कॉर्प्ओरेट अपना कब्जा करने का इरादा कर रहा है। इसलिए जब तक पूरे इलाके, पूरी ग्राम सभा को पांचवे अनुसूची के तहत नहीं बचाया जाएगा तब तक समाधान नहीं है। रिकॉर्ड ऑनलाइन करना कॉर्पोरेट के लिए हितकारी है पर जनता तो कैशलेस होकर अभी भी कोई काम-धंधा नही कर सकती। हमें ऑनलाइन खतियान में बहुत बड़ी संख्या में निजी जमीन कम करके दिख रही है। सरकार का कहना है कि 1932, 1964 खतियान को भूल जाइए। लोगों को लड़वाने के लिए किसी की जमीन किसी के नाम पर करवा दिया है और लातेहार में इसके चलते 10800 केस दर्ज हुए हैं। ऐसी स्थिति में झारखंड को और भारत को बचाना हमारे ही हाथ मे है।

सामाजिक कार्यकर्ता बलराम ने कहा कि पहले की तुलना में चुनौती बढ़ गयी है। कॉर्पोरेट और राजनीतिक दलों के बीच साठगांठ पहले से रही है लेकिन अब कॉरपोरेट ही सरकार चला रहे हैं। झारखंड में बहुत अच्छी सड़कें बन रही है जो अडाणी कॉर्पोरेशन को फायदा पहुँचाने के लिए बनाई गयी हैं लेकिन इनको जनता के विकास के नाम पर प्रचारित किया जा रहा है।

चर्चा के दौरान PRC की टीम द्वारा तैयार की गयी रिसर्च रिपोर्ट को रिलीज़ किया गया। इस दौरान एनएपीएम के राष्ट्रीय समन्वयक मधुरेश कुमार ने चर्चा में जोड़ते हुए कहा कि लैंड बैंक एक बढ़ती हुई समस्या है। सरकार बहुत तेजी से कानून बदल ले रही है और जनता को धोखे में रख रही है। मोमेंटम झारखण्ड में 210 MOU करके 3 लाख करोड़ के निवेश के साथ 6 लाख से ज्यादा रोजगार पैदा करेंगे, ऐसी खबर बनाई गयी। लेकिन बाद में देखने से पता चला कि ऐसी कंपनिया हैं जिनकी कुल पूंजी 1 लाख है लेकिन उनसे करोड़ों के MOU कर लिए गए हैं और हजारों की संख्या में रोजगार देने का बेतुका वादा किया है। इस बीच एक आम नागरिक होने के नाते सवाल करने वालों में भय और आतंक फैलाया जा रहा है।

‘लोकतंत्र और विकास का वर्तमान परिदृश्य/संसाधनों के स्वामित्व को हड़पने की साजिश: साहेबगंज में पोर्ट और गोड्डा में अडानी पॉवर प्लांट का अध्ययन’ रिपोर्ट के लेखक राधेश्याम मंगोलपुरी ने गोड्डा साहिबगंज के ताजा विकास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि साहेबगंज में लोगों को ये भ्रम दिया गया है कि वहां बन रहा बंदरगाह देश की सुरक्षा में काम आएगा। गंगा नदी के दियारे में रह रहे लोगों की अलग समस्यायें है जिसको दरकिनार कर दिया गया है। पशुपालक और खेतिहर लोगों को प्रोजेक्ट के चलते अपूरणीय नुकसान हुआ है। गोड्डा में भूमि संघर्ष के नेता चिंतामणि साहू ने पूछा कि जहां जनता जमीन नहीं देना चाहती हो, जहां पानी की कमी हो, जहां कानून जमीन के हस्तांतरण को रोकता है, ऐसी जगह पर हजारों एकड़ जमीन अडाणी कंपनी को क्यों दिया जाए? जमीन नही तो संथाल नहीं। युवा कवयित्री जसीता केरकेटा ने कहा “मैंने गोड्डा की घटना के बाद लोगों की भावना जानने की कोशिश की। लोग अपने पुरखों की जमीन कॉर्प्ओरेट के मुनाफे के लिए नहीं छोड़ना चाहते।”

एनएपीएम झारखंड के संयोजक बसंत हेतमसरिया ने गोड्डा और साहिबगंज में रीसर्च के दौरान जानकारी जुटाने में आई मुश्किलों को सामने रखा। उन्होंने बताया कि धार्मिक उन्माद और अडानी कम्पनी के भय के कारण पूरा फ़ील्ड वर्क गहरी असुरक्षा के बीच हुआ। गोड्डा फैक्ट फाइंडिंग समिति के सदस्य रहे विवेक ने कहा कि पानी, कोयला, जमीन झारखंड का लगेगा, प्रदूषण भी यहीं होगा, लेकिन बिजली बांग्लादेश में बेची जाएगी। जन सुनवाई के दौरान 500 से ज्यादा पुलिस बल तैनात किया गया था। जो रैयत जमीन नही देना चाहते थे उनको पीटा गया और उनके ख़िलाफ़ एफआईआर कर दी गयी। बाद में अडाणी के कमर्चारियों ने ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से न सिर्फ़ फसल और पेड़-पौधे बल्कि ग्रामीणों के पूर्वजों की समाधि को भी तोड़ दिया। इस तरह उनके संसाधनों, रोज़गार, धर्म, संस्कृति सभी पर प्रहार किया गया। पावर प्लांट बनने के बाद से आसपास फसल होने की गुंजाइश नहीं बचेगी।

शहरी मामलों पर काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता लक्खी दास ने बताया कि झारखण्ड के बड़े शहर कॉर्पोरेट घरानों ने अपने हित साधने के लिए बसाये। शहरी विकास के लिए सरकार से बजट का आवंटन हमेशा से कम रहा। स्लम-मुक्त शहर की कल्पना करती हुई ऐसी योजनाएं आईं जो कि सीधे तौर पर शहरी विस्थापन के लिए जिम्मेदार रहीं। एकल नारी सशक्ति संगठन की बिन्नी आज़ाद ने शहर में महिलाओं की सुरक्षा और बुनियादी ज़रूरतों के प्रति योजनाकारों की लापरवाही को रेखांकित किया। चर्चा में कोशी नवनिर्माण मंच से जुड़े महेंद्र यादव ने जल संसाधन और नदियों की परिस्थितिकी में हो रहे परिवर्तन और जन-आंदोलनों को भी अन्य संसाधनों के साथ जोड़कर मुहिम छेड़ने का सुझाव दिया।

कार्यक्रम में लगभग 100 से ज़्यादा प्रतिभागी मौजूद थे.

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Scroll to top