भारत और दुनिया के एक बड़े भूभाग में ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार के लिए आई थी । आगे चलकर उसी के गर्भ से इन देशों में ब्रिटिश हुकूमत का उदय हुआ । उस कालखण्ड में ब्रिटिश हुक्मरान अपने द्वारा विकसित किए जा रहे ढाँचा निर्माण और विकास को स्थानीय लोगों और समाज की उन्नति के लिए अपना योगदान ही कहते थे। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार अपनी योजनाओं की घोषणा, निर्माण और अमल की सूचनाएं और जानकारियां सार्वजनिक तौर पर टुकड़े-टुकड़े में साझा करती थी ताकि इसके तात्कालिक और दूरगामी परिणामों एवं प्रभावों के बारे में कोई एकीकृत और सामूहिक आँकलन कर पाना मुश्किल हो और तथाकथित विकास की इन योजनाओं के खिलाफ़ कोई मुखर प्रतिरोध शुरू न हो पाए। इसके बावजूद धीरे-धीरे अंग्रेजों की यह रणनीति जग-जाहिर होने लगी और इसका संगठित विरोध भी होने लगा । कालांतर में यही विरोध गुलामी से मुक्ति का आंदोलन बना। उस समय इस आंदोलन में भारतीय उद्योगपतियों और व्यापारियों का भी खुला सहयोग और समर्थन था ।
लेकिन जनता के साथ उनके सहयोग और समर्थन का यह काल बहुत लम्बा नहीं चला । आजादी के एक ‘ाताब्दी पूरा होने के पहले ही यहां के पूंजीपतियों ने सामूहिक रूप से अपने को ईस्ट इंडिया कंपनी के चाल-ंउचयचरि= में रंग लिया । इसमें उन्हें देज के ‘ाासक और प्रभु वर्ग का भरपूर समर्थन हासिल हुआ। वैज्वीकरण और निजीकरण के इस दौर में नवउदारवादी राज्य ने सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय अन्याय को चरम पर ला दिया है । हर पूंजीपति की एक-ंउचयसी कहानी है, सिफऱ् नाम और खानदान अलग-ंउचयअलग हो सकते हैं । हम यहां -हजयारखंड के संदर्भ में एक खास पूंजीपति और उसके सपनों की परियोजना का आकलन करते हुए बात करेंगे । उस पूंजीपति का नाम है गौतम अदानी । इनके पास कंपनियों का अंबार है, इनकी कंपनियों का जाल-ंउचयसंजाल विस्तृत है । हर काम के हकदार सि) कर लेते हैं ये । ये हैं भारत के वैज्विक पूंजीपति ।
इनका दुनिया के हर उस इलाके में दखल है जहां से संसाधानों को लूटा-ंउचयखसोटा जा सकता है । ऐसी ही लूट-ंउचयखसोट वाली मेहनत की कमाई से जमा अकूत संपत्ति के कारण इन्हें दुनिया के दस संपत्तिजाली लोगों में गिना जाता है । इन्होंने ऑस्ट्रेलिया में कोयले की खदान को
येन-ंउचयकेन-ंउचयप्रकारेण तरीके से हथियाया है । इसे हथियाने में भारत के प्रमुख सेवक ने अपनी सेवा दी है । इन्होंने ऑस्ट्रेलिया में अगले 60 व”ार् तक 2-6 बिलियन टन कोयला खनन का अधिाकार प्राप्त किया है । यह ऑस्ट्रेलिया के साथ-ंउचयसाथ दुनिया का नंबर एक खनन-ंउचयक्षे= माना जाता है । अदानी यहां से कोयला निकाल कर दुनिया के दूसरे हिस्से के साथ-ंउचयसाथ भारत भी लाएंगे । इन्होंने कोयले की आवाजाही सुनिज्चित करने हेतु प्रतिब) बंदरगाह को अपने अधिाकार में लिया है, जो निर्बाधा रूप से सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा है । यह भी सुनिज्चित किया गया है कि ऑस्ट्रेलिया से आने वाला अधिाकांज कोयला भारत में आए । इसकी तैयारी के लिए इन्होंने भारत के कई राज्यों के
पुराने बंदरगाहों पर कब्जा किया है या नए बंदरगाहों के निर्माण का अधिाकार प्राप्त किया है । इन राज्यों में गोवा, गुजरात, आंधा्रप्रेदज, केरल और -हजयारखंड ‘ाामिल हैं । आयातित कोयले का ज्यादा इस्तेमाल वह खुद अपने पॉवर प्लांटों में करेंगे और बाकी दूसरी कंपनियों को बेचेंगे ।
आज दुनिया में कोल खनन और कोयले से पैदा होने वाली ऊर्जा का विरोधा हो रहा है और कई देज इसके उपयोग को बंद कर रहे हैं या प्रतिबंधिात कर रहे हैं, क्योंकि इससे पर्यावरणीय ऊ”मा ब-सजय़ती है और जलवायु-ंउचयपरिवर्तन की समस्या पैदा होती है । ऑस्ट्रेलिया कंजर्वेजन फ़ाउंडेजन ने अदानी के कोल खनन को कानूनी चुनौती भी दी है ।
अदानी का गोड्डा पॉवर प्लांट इसी वैज्विक पूंजीनिवेज और संसाधान लूट की कड़ी का हिस्सा है और साहेबगंज पोर्ट उस तक पहुंचने का सुगम मार्ग। अदानी की इन दोनों परियोजनाओं का स्थानीय स्तर पर कड़ा प्रतिरोधा हो रहा है । लेकिन -हजयारखंडी जनता द्वारा चुनी गई सरकार अदानी के आगे-ंउचयपीछे खड़ी है और उनकी रक्षा में सरकारी सजस्=-ंउचयबल और प्रजासन का पूरा तं= खड़ा है । यही वजह है कि निहत्थी जनता लड़ते हुए अपने को अकेला पाती है ।
अभी-ंउचयअभी अदानी के गोड्डा पॉवर प्लांट को -हजयारखंड सरकार ने “विजे”ा आर्थिक क्षे=“ के रूप में मंजूरी दी है । इस विजे”ा क्षे= को मंजूरी देते हुए सरकार ने बहुत ही गर्वपूर्वक कहा, “इस सेज से उत्पादित होने वाली संपूर्ण बिजली का निर्यात पड़ोस के देज बांग्लादेज में किया जाएगा, जिससे इस पूरे इलाके का विकास होगा ।“ उसने आगे कहा, “अदानी पॉवर प्लांट के विजे”ा आर्थिक क्षे= बनने से अन्य उद्योगों का मार्ग खुलेगा । साथ ही साथ विजे”ा आर्थिक क्षे= के अन्दर लगने वाले सभी उद्योगों पर अगले कुछ सालों के लिए सभी प्रकार के टैक्सों पर छूट होगी और सभी प्रकार की सरकारी सहायता पूर्ववत जारी रहेगी ।“
आज -हजयारखंड की सरकार देज और दुनिया के पूंजीपतियों के लिए “मोमेंटम -हजयारखंड“ का मेला लगाती है जहां -हजयारखंड के संसाधानों की लूट के लिए बोली लगवाई जाती है और जो लोग इसके खिलाफ़ आवाज उठाते हैं उन्हें रा”ट्रद्रोही घोि”ात करके जेलों में बंद कर दिया जाता है। दूसरी ओर, आदिवासियों के लिए सुरक्षा कवच बने कानूनों को भी पूंजीनिवेज के नाम पर पूंजीपतियों के हित में बदला जा रहा है ।
चौथे “मोमेंटम -हजयारखंड“ के लिए पूरे राज्य के साथ-ंउचयसाथ देज के कई दूसरे इलाकों में ऐसा प्रचार-ंउचयप्रसार किया गया, मानो इससे -हजयारखंड के जन-ंउचयसमुदाय का कायाकल्प होने वाला है । रांच की सड़कों को दुल्हन की तरह सजाया और संवारा गया । ऐसे ही समिट में
अदानी ग्रुप ने गोड्डा में 1600 मेगावाट कोयला-ंउचयआधाारित अल्ट्रा-ंउचयमेगा-ंउचयसुपर क्रिटीकल पॉवर प्लांट और साहेबगंज में गंगा नदी पर पोर्ट स्थापित करने की घो”ाणा की । -हजयारखंड में लगाई जा रही अदानी की दोनों परियोजनाओं से स्थानीय समुदायों को रत्तीभर भी फ़ायदा नहीं है, जबकि दोनों परियोजनाएं उन्हीं की धारती पर और उनके ही संसाधानों पर कब्जा कर लगाई जा रही हैं । ये दोनों परियोजनाएं वैज्विक स्तर पर निगमीकरण का हिस्सा हैं जिनमें स्थानीय और दूसरे मुल्कों के संसाधानों का दोहन होगा और कॉर्पोरेट को फ़ायदा ही फ़ायदा ।
सŸाा के जिखर और अदानी का सितारा
अदानी के व्यापार का मूल मं= है “अच्छाई के साथ उन्नति,“ और यह भारत के लिए सबसे बड़े अच्छाई निर्माता हैं । कितनी लुभावनी और आक”ार्क
है यह टैग लाइन ! तीन दजकों में ही इन्होंने इतनी मेहनत की कि यह फ़र्ज से अर्ज पर पहुंच गए। हां, इन्होंने रात-ंउचयदिन मेहनत की -ंउचय फ़ैक्ट्री, खदानों या खेतों में नहीं बल्कि सŸाा के गलियारों में । यही कड़ी मेहनत इन्हें अच्छे दिन वाला व्यापारी बनाकर इनका नाम रोजन कर रही है । व”ार् 2014 में मई का महीना हर उस ‘ाख्स को याद होगा जो नरेंद्र मोदी की उत्क”ार् यात्र को जानता है । उस वक्त जब गुजरात के मुख्यमं=ी नरेंद्र मोदी भारत के प्रधाानमं=ी के रूप में ‘ापथ लेने के वास्ते अहमदाबाद से दिल्ली के सफ़र पर निकलते हैं तो उनकी अगुवानी में अदानी का विमान सजधाज कर तैयार मिलता है । यह कोई अचानक नहीं होता है । इसकी नींव व”ार् 2002 के दंगे के तुरंत बाद पड़ चुकी थी, जब सीआइआइ द्वारा दंगे में ि-सजयलाई बरतने के लिए मोदी की आलोचना की जाती है । उस समय अदानी मोदी के साथ खड़े हो जाते हैं । यहीं से सŸाा और व्यापार की जुगलबंदी ‘ाुरू हो जाती है । अदानी सŸाा के गलियारे में सिफऱ् मोदी के साथ विचरण नहीं करते, इनकी पहुंच हर पार्टी के उस जिखर नेतृत्व से है जिनसे इनका व्यापार सधाता है । यही वजह है कि इतने कम समय में इन्होंने कोयला खनिज, सोलर पॉवर, डिफ़ेंस और एरोनॉटिक्स, फ़ूड-ंउचयप्रोसिस, एग्रीकल्चर लॉजिस्टिक, एग्रो-ंउचयफ्रेस, पोर्ट और विजे”ा आर्थिक क्षे=, रेल और सड़क -सजयांचा निर्माण, अफ़ोर्डेबल हाउसिंग जैसे हर क्षे= में मुनाफ़ा बनाने वाली कंपनियां खड़ी कर ली हैं और दुनिया के हर इलाके में वहां की सरकारों को साधाकर रातों-ंउचयरात अरबपतियों की सूची में ‘ाोहरत पा ली है । भारत के हर खनिज संपदा पर इनकी गि) निगाहें हैं और उसे साधाने के लिए वह हर राजनेता से पहुंच बनाते हैं । लेकिन इनके उत्क”ार् के काल के रूप में 2014-ंउचय2019 का खास महत्व है ।
दुनिया में जब-ंउचयजब निरंकुज सŸाा आई है, पूंजीपतियों के पूंजी-ंउचयदोहन के रास्ते आसान हुए हैं । यही वजह है कि आज -हजयारखंड और दूसरे खनिज-ंउचयबाहुल्य इलाकों में इनका प्रवेज, दोहन और दमन ब-सजय़ा है । यह भी सही है कि पहले भी सŸाा के अंदर कॉर्पोरेट की दखल रही है, लेकिन आज तो सरकारें कॉर्पोरेट के प्रति पूर्ण समर्पित हैं ।
अदानी के व्यापार का मूल मं= है “अच्छाई के साथ उन्नति,“ और यह भारत के लिए सबसे बड़े अच्छाई निर्माता हैं । कितनी लुभावनी और आक”ार्क
है यह टैग लाइन ! तीन दजकों में ही इन्होंने इतनी मेहनत की कि यह फ़र्ज से अर्ज पर पहुंच गए। हां, इन्होंने रात-ंउचयदिन मेहनत की -ंउचय फ़ैक्ट्री, खदानों या खेतों में नहीं बल्कि सŸाा के गलियारों में । यही कड़ी मेहनत इन्हें अच्छे दिन वाला व्यापारी बनाकर इनका नाम रोजन कर रही है । व”ार् 2014 में मई का महीना हर उस ‘ाख्स को याद होगा जो नरेंद्र मोदी की उत्क”ार् यात्र को जानता है । उस वक्त जब गुजरात के मुख्यमं=ी नरेंद्र मोदी भारत के प्रधाानमं=ी के रूप में ‘ापथ लेने के वास्ते अहमदाबाद से दिल्ली के सफ़र पर निकलते हैं तो उनकी अगुवानी में अदानी का विमान सजधाज कर तैयार मिलता है । यह कोई अचानक नहीं होता है । इसकी नींव व”ार् 2002 के दंगे के तुरंत बाद पड़ चुकी थी, जब सीआइआइ द्वारा दंगे में ि-सजयलाई बरतने के लिए मोदी की आलोचना की जाती है । उस समय अदानी मोदी के साथ खड़े हो जाते हैं । यहीं से सŸाा और व्यापार की जुगलबंदी ‘ाुरू हो जाती है । अदानी सŸाा के गलियारे में सिफऱ् मोदी के साथ विचरण नहीं करते, इनकी पहुंच हर पार्टी के उस जिखर नेतृत्व से है जिनसे इनका व्यापार सधाता है । यही वजह है कि इतने कम समय में इन्होंने कोयला खनिज, सोलर पॉवर, डिफ़ेंस और एरोनॉटिक्स, फ़ूड-ंउचयप्रोसिस, एग्रीकल्चर लॉजिस्टिक, एग्रो-ंउचयफ्रेस, पोर्ट और विजे”ा आर्थिक क्षे=, रेल और सड़क -सजयांचा निर्माण, अफ़ोर्डेबल हाउसिंग जैसे हर क्षे= में मुनाफ़ा बनाने वाली कंपनियां खड़ी कर ली हैं और दुनिया के हर इलाके में वहां की सरकारों को साधाकर रातों-ंउचयरात अरबपतियों की सूची में ‘ाोहरत पा ली है । भारत के हर खनिज संपदा पर इनकी गि) निगाहें हैं और उसे साधाने के लिए वह हर राजनेता से पहुंच बनाते हैं । लेकिन इनके उत्क”ार् के काल के रूप में 2014-ंउचय2019 का खास महत्व है ।
दुनिया में जब-ंउचयजब निरंकुज सŸाा आई है, पूंजीपतियों के पूंजी-ंउचयदोहन के रास्ते आसान हुए हैं । यही वजह है कि आज -हजयारखंड और दूसरे खनिज-ंउचयबाहुल्य इलाकों में इनका प्रवेज, दोहन और दमन ब-सजय़ा है । यह भी सही है कि पहले भी सŸाा के अंदर कॉर्पोरेट की दखल रही है, लेकिन आज तो सरकारें कॉर्पोरेट के प्रति पूर्ण समर्पित हैं ।
इंस्टिट्यूट फ़ॉर डेमोक्रेसी एण्ड सस्टेनेबिलिटी द्धआइडीएसऋ और जन-ंउचयसंसाधान पीठ विगत कई दजकों से ऐसे ही -सजयांचागत विकास के बीच छिपे अदृज्य राजनैतिक-ंउचयसामजिक और आर्थिक “संबंधाों“ व “प्रभावों“ को -सजयूं-सजयने और इससे जुड़े हुए सवालों को जांचने-ंउचयपरखने तथा प्रभाव आकलन करने का कार्य कर रही हैं । साथ-ंउचयसाथ ये दोनों संस्थाएं एक वैकल्पिक, समतामूलक और लोकतांत्रिक समाज की अवधाारणा को विकसित करने की पहल कर रही हैं ।
-राजेंद्र रवि